तभी तो बची हुई है नमी भी..
तभी तो जन्म ले रही हैं बारिशें..
तभी तो और अधिक चटकीले हो रहें हैं इंद्रधनुष..
तभी तो कोई गिनने लगा है तारों को रातों में..
तभी तो भाती है मुंडेर पर बैठी हुई पीली धूप..
तभी तो होती हैं लंबी बातें उस चांद से भी..
तभी तो बार बार लौट आता है पतझड़ भी बसंत के लिए..
तभी तो चहक रही हैं चिड़ियां आंगन में..
तभी तो लिख रहा कोई प्रेम कविता..
तभी तो बची रह जाती है हर बार ये दुनिया थोड़ी सी और..
और हां,,तभी तो तक रहें हैं राह सूरज की, ये सूरजमुखी !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश