सुभग कर विलसिल नयन,
नुपुर रुनझुन,मधुप गुनगुन,
सब सुहाना लगता प्रियतम,
जो तुम मुझको जान लेते,
उर वेदना जो तुम पहचान लेते।
रजनीगंधा से बना मेरा गजरा,
राह निहारे अँखियन का कजरा,
विरह वृत के वर्तुल को जो तुम माप लेते,
मुझ विरहन के साज सज्जा को आकार देते।
शिथिल चरणों में पाजेब की करुण झंकार,
कंगन,चूड़ी,बिंदिया रही तुझे पुकार।
मेरी प्रतीक्षा का जो तुम जवाब देते,
श्रृंगार पर मेरे प्रीत जो तुम वार देते।
कैद हूँ मैं प्रिय प्रेम के अवगुंठन में,
तन चल रहा मेरा,उर अचल तेरे बँधन में।
खोलकर इसको तुम मुझे जो आज़ाद कर देते,
एकाकी पन से मुझको तुम जो निर्वाण कर देते।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)