जीवन सुपथ की,
आभरण जो,
मानव-चरित का,
सूक्ष्म आत्मा की वाणी।
मन, कर्म से,
वचन से, सत्य का
वती, शोधक।
युग विवेक-श्रेय,
पावन मनु लक्ष्य।
सत्य साधक,
विशाल तरुवर।
दे मधु शस्य,
अनंत कल्प तक,
विश्व-क्षेम सेवक।
होते आदृत,
मैं,नहीं, हम वरें,
तरणी बनें,
जन के मोक्ष हेतु।
वे ज्योतिर्मय सेतु ।
@ मीरा भारती
पुणे, महाराष्ट्र