अपना नम्बर दे दो माँ

माँ,हर दोपहर तुम्हारा कॉल आना,

अक्सर बातें होना पर कभी कभी

कविताओं की व्यस्तता में उस कॉल

की अवहेलना भी कर देना,

हाँ,तुम्हारा प्रतिपल प्रयासरत रहना,

जब तक मैं कॉल उठा न लूँ,

तुम्हारा परेशान ही रहना।

कहती थी"आज फिर 'माइग्रेन'तो नहीं?"

"तुम ठीक हो न कोई तकलीफ तो नहीं?"

माँ अंत समय तक तुमने मुझे कॉल किया,

बस आखिरी दिन तुमसे बातें न हो पाई,

तुम्हारी बेटी व्यस्त रही 'सम्मान पत्र'बनाने में,

अपनी माँ की आखिरी आवाज़ न सुन पाई।

मैं सच में स्वार्थी हूँ,सिर्फ तुम्हारा प्यार लिया,

कभी उस प्यार के बदले न उतना प्यार दिया।

अब कभी नहीं कॉल काटूँगी तुम्हारा,

बस इक बार अपना नम्बर दे दो माँ,

तुम्हारे प्यार को तरस रहा यह मन मेरा,

स्नेह भरे आँचल का अम्बर दे दो माँ।

                         रीमा सिन्हा

                   लखनऊ-उत्तर प्रदेश