अगर ले आते सीता माँ लक्ष्मण
वन से वापस फिर से महलों में.
क्या बदल जाते मन के भाव
जो धोबी के कारण उपजे थे.
वह नारी थी जनक की पुत्री
दोष नहीं था उसका सच्ची पत्नी.
क्या कर सकता धोबी सीता का
मान रखना था उन्हें पति राजा का.
कैसे वह आ जाती महलों में
क्या सुख भोग पाती महलों में.
महल में अगर जीती जीवन वन जैसा
फिर भी प्रश्न तो रहता वैसा का वैसा.
सौभाग्य था सीता का पति श्री राम
पति और राजा एक ही श्री राम.
कैसा भाग्य था कठिन जीवन था
स्वेच्छा से वन चुना थी वह सीता माँ .
चुन सकती थी महलों को ही वह
पर रही आश्रम में साधारण वह.
क्या सुख पाती सीता दो पुत्रों का
प्रमाण मांगा राम ने लव कुश का.
कोई भी नहीं इच्छा थी महलों की
कब तक अग्नि परीक्षा देती रहती.
जागी अब सच्ची नारी थी
राम की वह प्राण प्यारी थी.
न हो मान पति का कम
न हो मान कम राजा का.
द्रवित विनती सुन धरती ने
न्याय किया पुत्री सीता का.
आ गयी बैठ सिंहासन में वहाँ
प्रेम और सम्मान से धरती माता.
मान न हुआ कम किसी का
और मान बढ़ा माता सीता का.
भौतिकता जान चुकी थी वह
क्या और कैसा सुख महलों का.
मन अगर दुखी हो किसी कारणवश
क्या सुख महलों का भाता त्याग बस.
कैसे कह दूँ राम गलत थे
कितना मान दिया माँ सीता ने.
वह सीता थी सीता सीता रही
जो जैसा सोचे वह भावना रही.
जब माँ धरती में समा रही थी
हर ह्रदय पर क्या बीत रही थी.
किसी को कब धरती लेने आई
पतिव्रता कितनी सच्ची सीता माई.
अगर ले आते सीता लक्ष्मण
वन से वापस फिर महलों में.
पूनम पाठक "बदायूँ "