कैसे छोड़ तेरी उँगली आगे बढ़ पाऊँगी
नही जानती किसी को वहाँ
सभी तो अपरिचित हैं
उनके मन कैसे मैं पढ़ पाऊँगी
बाबा दूजे घर …
जब भूख लगती है माँ से कहती हूँ
नए घर किस से कह पाऊँगी
अपनी पसंद की छोटी चीजें
कैसे लाऊँगी
याद है बुख़ार में तुम मौसमी का जूस
निकाल देते हो
कितने मनुहार से पिलाते हो
वहाँ किससे इतना हक़ पाऊँगी
होली दिवाली अपनी सोन चिरैया को
कपड़े मेरी पसंद के ही दिलाते थे
थक जाने पर सिर पर घी की मालिश
जबरदस्ती करते थे
असर भी होता था दर्द ठीक हो जाता था।
वहाँ किससे ये प्यार पाऊँगी
सवि” सावित्री शर्मा “