आकुल हुई धरा आज।
एक चौथाई हिस्सा जल ,
फिर भी जल को तरसे आज।
जल ही जीवन गाता रहा मानव,
आया न उसे प्रकृति संरक्षण विचार।
जल का स्तर हुआ अब नीचे ,
भुगतो अब प्रकृति का संहार।
जल हमारे जीवन का है आधार,
संभल जाओ मत करो बरबाद।
जल संकट से त्रस्त हुए गाँव और शहर,
हर तरफ मची तबाही और कहर।
जिसने तुम्हें दिया है जीवन,
उस धरा का तुम सम्मान करो।
बूँद बूँद पानी का महत्व समझो,
प्राकृतिक संसाधनों न अपमान करो।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)