"यह भी सत्य है "

इस रंग पर्व अंशु ने निर्णय  लिया है कि प्रिय बहन नेहा के समक्ष अंतर्मन का भूला-बिसरा पृष्ठ अवश्य साझा करेगी।उत्सव सरल प्रेम का शुभ दिन है न ! चंद्र-सूर्य की तरह अटल सत्य  है कि अंशु और नेहा (अंशु नेहा की इकलौती बुआ की बेटी है ) का सगी बहनों की तरह लालन-पालन हुआ। दोनों में भावों का समता-योग भी है। दोनों एक वृन्त  के दो सुंदर पुष्पों की भांति और, घर की नयनज्योति की तरह भी  हैं।  

दोनों अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट और सफल हैं, नेहा पर्यावरण वैज्ञानिक और लेखिका है, अंशु और उसके पति एक ही बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं। दोनों के  घर मुंबई के अलग टाउनशिप में हैं,प्रायः इनका मिलन उत्सव-रूप

भासित होता है। नेहा के माता-पिता चिकित्सक हैं,पटना के, अंशु की माँ सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापिका के पद से सेवा-निवृत्त है,पिता का सड़क-दुर्घटना में स्वर्गवास हो गया था, जब अंशु ८ महीने की थी। अंशु के मन में कानून-विशेषज्ञ दादा जी की पुण्य-स्मृति के साथ उनकी समृद्ध विरासत भी है।

होली में प्रिय रंगों के आदान-प्रदान के बाद,गुझिया की मिठास मन में घुल रही थी, बच्चों की किलकारियों के बीच अंशु ने कहा, 'नेहा,तुम्हे याद् है, जब  हम वर्ग २ में पढ़ते थे,तुम्हारी नई गुड़िया मैंने तोड़ दी थी। तुमने कहा,माँ और मैं माला रोड के घर में क्यों नहीं रहते , मामी तुम्हे अलग ले जाकर समझाना चाहती थी,पर तुम्हारी रुलाई नहीं रुक रही थी। नेहा ने स्मृति पर जोर डाला,अंशु कहती रही, नानी मुझे अलग ले जाकर बोलीं , नेहा के पापा-मम्मी का घर है,तुम थोड़ा सह लो,नेहा  से दोस्ती कर लो बेटा। हम एक साथ बड़े हुए,हमारी मित्रता परिवार का संबल है, पर नानी का 'थोड़ा सह लो'

इसका कारण मैं अब भी नहीं जान पाई,जबकि मामा-ममी,नाना-नानी का प्यार शायद मेरे मन की सबसे सुखद अनुभूति है।

दोनों बहनों के मन में एक ही विचार था, "पितृसत्तात्मकता की जड़ें समाज में गहरी हैं..... बेटी के लिए प्रेम भी सच है और यह भी।"

@ मीरा भारती,

पुणे, महाराष्ट्र।