सच के तराजू पर उसको तोलो।
हृदय तुम्हारा सब है जानता
वह तो तुम्हें खूब पहचानता।
सच बोले मन का इकतारा
सच्चाई कहांँ छुपी तुमसे
हृदय में तुम्हारे ईश्वर बसता।
उससे कुछ छुपा कहां रहता
सच बोले मन का इकतारा।
एक झूठ छुपाने की खातिर
सौ झूठ तुम हो बोलते।
घूम फिर कर उसके चक्कर में
सच से मुंँह तुम मोड़ते
सच बोले मन का इकतारा।
माया जग की बड़ी विचित्र
तुमसे ना रुक पाएगी।
लाख तुम झूठ बोल लो
सच के सामने ना टिक पाएगी।
मन तो सब है जानता
सच बोले मन का एक तारा।
स्वार्थ में तुम लिप्त हो रहते
उतार-चढ़ाव की बातें कहते।
झूठ का हरदम सहारा लेते
लालच से तुम घिरे हो रहते।
सच बोले मन का एक तारा
जोर तुम कितना भी लगा लो।
दमड़ी तक ना ले जाओगे।
झूठ कहांँ जीता है जग में
एक दिन तो वह है हारा।
लेता परीक्षा वक्त सत्य की
सच बोले मन का इकतारा।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा