कलम उठी,
इधर झुकी, उधर झुकी
रुक रुक कर चली
हर पृष्ठ को रंगीन कर चली !!
मन को भी रंगीन कर गयी
कलम उठी
अरे वाह, होली आई होली आई !!
ये मन की होली है
अतीत के रंग छूने लगे मन को,
और मन ने कलम को भी रंगीन बनाया !!
एक मीठा सा अहसास जगाया
उभर आई गुझिये की मिठास
फिर व्यंग्य का तंज लगा
और दही बड़े का स्वाद आया !!
लो जी कोई रंग गुलाल
मुझ पर डाले न डाले
कलम ने मन को रंग डाला !!
अरे वाह !! होली आई होली आई !!
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़