रंगों की मतवाली फुहार चली।
झूम उठे हैं भोले हर हर,
भांग, ढोल,मंजीरे की थाप चली।
लड़कों की मस्तानी टोली,
सखियां भी साथ साथ चली।
हर तरफ राग फाग की धुन ,
होलियारों की जमात चली।
गुजिया,पकौड़े,पुआ,पकवान,
सौंधी खुश्बू की वात चली।
गले मिल गये सब आपस में,
कहाँ अब जात-पात चली?
मुनिया है गुस्सा रंग लगाने पर,
उसे मनाने उसकी मात चली।
हर तरफ उन्मादी हवा है छायी,
दुःख संताप हो समाप्त चली।
कान्हा खेले गोपियों संग,
राधा की ना बात चली।
रूठ गयी जब राधा रानी,
कृष्णा के देखो हाथ रँगी।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)