पुरखो की प्राचीन परंपरा, भूल रहे अपने संस्कार ।।
छूट रही वो खेल कबड्डी छूट रहे वो कुश्ती का खेल।
जगह लिया अब पोगो ने बच्चे खेल रहे मोबाइल खेल।
अब गिलास भर दूध कहाँ है, कहाँ गया वो दही भात ?
अब तो बस माजा का बोतल और बासी ब्रेड है हाथ।
माँ के आँचल ने रूप बदल कर, पहना जीन्स और टॉप के साथ ।
अब उसमें ममता की छाया, ढूंढ़ना हीं है बेकार।।
बाबू जी की धोती अब, डैडा के हो गए पतलून ।
प्यार महोब्बत भूल भाल कर नोट कमाने में मशगूल ।।
बच्चे पल रहे बाल घर मे अब काम बाली की निगरानी में ।
तैयारी करलो अपने भविष्य की कटनी किसकी निगरानी में ??
नानी बाले किस्से मर गए, रिश्ते हो गए तार तार।
दो कमरे और चार लोगों में सिमट गया पूरा संसार।
बाबा बाले खाट सूने हैं,उनका लोटा सूना बीन पानी के ।
वो बैठे बृद्धाश्रम में ,दलान सूना बीन बाबा के।।
दौड़ रहे है अनजान डगर पर ढूंढ रहे अनजाने ख्वाब।
परिवार समाज से दूर हो रहे भूल रहे अपने संस्कार।।
इसी तरह अगर चलते रहे तो खत्म हो जाएगा आगे का राह।
इस संकुल वाले परिवार से एकल हो जायेगा समाज।।
श्री कामलेश झा नगरपारा