मस्तक शोभित चन्द्रमा, जटाओं से छलके गंगा धार
तांडव कर बने नटराज,भूत प्रेत संग कहलाए भूतनाथ
तंत्र साधना से हुए भैरव,सृष्टि के संहारक तुम विश्वनाथ
अर्धांगिनी शक्ति स्वामी तुम,उमापति त्रिनेत्रधारी
निरंकारी बन हुए पूज्य,भक्त बना दशानन अहंकारी
डमरू बजे उठे मधुर तरंग,भस्म रमा बने मस्त मलंग
जीवन-मरण सब है शिव का,इनका नहीं कोई आदि-अंत
भक्तों में न किया भेदभाव,राम भी इनके रावण भी इनका
वरदानों के देव हैं शिव, भोला भंडारी रूप है जिनका
रण में जब धरे रौद्र रूप, इनका भयंकर है हर वार
कल्याणकारी बने महाकाल,करे असुरों का संहार
कैलाश विराजे हुए कैलाशी, विषपान किया हुए विषधर
त्रिनेत्रधारी हैं त्र्यंबकेश्वर, गंगा धरे मस्तक गंगाधर
चेतना के हैं अंतर्यामी, महादेव महा एकाकी
अखंड है, प्रचंड हैं,आदिदेव,ध्यानी है ये वैरागी
शिवशक्ति है और ब्रह्म भी अनादि है और अनंत हैं
सत्यम शिवम सुन्दरम हैं, ओमकार सबके भगवंत हैं
वंदना जैन