युद्ध आखिर क्यों
क्यों उपजते हैं युद्ध
कैसी बहादुरी है
जिसके पीछे नरसंहार है
कैसी निडरता है
जिसके पीछे चीखें हैं
मानवता रोती है
पल पल धैर्य खोती है
कहीं प्रेमी मरा कहीं प्रेमिका
टूट गया भाई बहन का प्यार
जहां पत्नी रोती है
अपने पति के लिए
कहीं ढूंढता पति पत्नी को
मां-बाप रोते बच्चों को
कहीं उजड़ गये परिवार
उजड़ गए बाजार हाट
शिक्षा संस्कृति
सब कोने में सिमटे
धुंआ धुंआ सब सुविधाएं
सन्नाटा और गोलियों की बौछारें
बारूद का धुआं
हैवानियत बयां कर रहा
मिट्टी का कण-कण
डर डर कर जी रहा
जमीन जो लाल हुई
बस गलत सोच से ही
नफरत और ईर्ष्या को
शांति की जगह क्यों बोया
न जमीं कम है
और न कम है आसमाँ
बस कोई जिद है
कोई स्वार्थ है दिल में पला
कुछ लोगों की सोच
को झेलती है मानवता
प्रकृति कब तक सहेगी
मनुष्य का राक्षसपन
आहत होता है पूरा विश्व
फैलती है अशांति विश्व
यदि नहीं समझा मानव
प्रकृति कर देगी विद्रोह
क्या कोई रोक सकेगा
फिर कौन बच सकेगा
इतिहास गवाह है
युग ही समाप्त हुए हैं
जीवन प्रकृति की देन है
हर व्यक्ति जीवन जीये
बेवजह युद्ध में
क्यों मानव जान गँवाये
कसूर क्या होता जनता का
जो उसे दर्द झेलना पड़ता
तू खुद माटी का खिलौना है
फेंक दे बारूद के खिलौने
युद्ध चलते जिनके इशारे पर
वे लोग नहीं हैँ अमर
न पियो खून कमजोरों का
भ्रम तोड़ो झूठी बहादुरी का
पूनम पाठक "बदायूँ "