इस परिवर्तन में यह नहीं देखा गया है कि राज्य ने अचानक स्वयं के लिए परिवारों में हस्तक्षेप करने, व्यक्तिगत पसंद और विकास के मामले में टकराव लाने के लिए अधिक शक्तियां प्राप्त कर ली हैं- खास तौर पर उस समय जब संघर्ष किसी मुद्दे पर बातचीत करने या परिवर्तन को प्रभावित करने का सबसे पसंदीदा तरीका प्रतीत होता है। यह सबसे बड़ा झटका है तथा मानव विकास के विचार के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जब बड़ी संख्या में लोगों को कार्रवाई पर भरोसा नहीं है और परिवर्तन का विचार चल नहीं पाता है, जिनमें वैचारिक अतिक्रमण होने की संभावना होती है तो उस समय कार्रवाई को स्थगित करना सबसे अच्छा होता है। परिवर्तन की जल्दबाजी करने के बजाय उस पर चर्चा, बहस और परिवर्तन के लिए अवसर उपलब्ध कराना चाहिए। इस सप्ताह के शुरू में लोकसभा में इस विधेयक को पेश करते समय केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी का भाषण शानदार नहीं था। इस विधेयक के बारे में फिलहाल सबसे अच्छी बात यह कही जा सकती है कि सरकार इस पर उचित बहस के लिए संसदीय प्रवर समिति के पास भेजने पर सहमत हो गई है।
किसी भी सूरत में इस विधेयक पर जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के लिए शादी की औसत आयु पहले से ही 22.1 वर्ष है। अगर अभी भी शादी की उम्र बदलने की जरूरत है तो ज्यादा विकल्पों की तलाश जरूर की जानी चाहिए। यदि समानता वांछित है तो इसे प्राप्त करने का एक तरीका यह है कि लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष की करने के बजाय लड़कों के लिए शादी की उम्र को 18 वर्ष तक कम किया जाए। यह एक उचित मुद्दा है कि जो नागरिक मतदान कर सकते हैं, उन पर वयस्कों के रूप में किसी भी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है, उन्हें कम से कम शादी करने का न्यूनतम अधिकार होना चाहिए। लड़कियों का आत्मसम्मान बढ़ाने के लिए जरूरी है कि एक निर्दयी कानून व्यवस्था के चक्रव्यूह में फंसकर पुलिस केस या अदालत के कमरे के साथ जीवन का एक नया चरण आरंभ करने के बजाय उन्हें खुद का फैसला लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।