पहचानो महा विभूतियों को पहले

जैसे ही १५ अगस्त या २६ जनवरी आते हैं बस सभी मध्मों में छा जाते हैं वे।चाहे स्वतंत्रता दिन या प्रजासात्तक दिन का अंतर ही पता न हो।सभी जगह सेल लगेगी उन्ही के नाम पर।सभी अखबारों में भी देश भक्ति के इश्तहारों से बड़े बड़े पन्ने भर ग्राहकों को सच्चे या जुठे प्रलोभनों से आकर्षित करने के प्रयास शुरू हो जाते हैं।टीवी के भी सभी कार्यक्रमों में देश भक्ति छा जाती हैं।क्या देश भक्ति की भावना प्रासंगिक हैं क्या? ये तो दूरगामी भावनाए हैं,अपने जीवन मूल्यों में इनका स्थान होना जरूरी हैं।नैतिक जीवन का मूल्यों पर आधारित होना, भावनाओं व्यवहार में लाना बहुत आवश्यक हैं।

 वैसे ही महापुरुषों के जन्म जयंती पर होता हैं।हैं उनके जीवन के बारे में चर्चाएं करके दो ही दिन में भूल जायेंगे।जैसे गांधी की नीतियों को देखें तो, सत्य– क्या हम सत्य का आचरण करते हैं,जरा जरा सी बातों में जूठ का सहारा लेने वाले हम कैसे सत्यनिष्ठ हो सकते हैं?छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा आदमी जूठ बोलने से परहेज नहीं करता हैं। जितना बड़ा आदमी उतना बड़ा जूठ होता हैं,चाहे वह घरकाम में मदद करने वाला हो,सब्जी वाला हो,दुकानवाला हो,या कोई व्यापारी हो,कोई सेल्स मैन हो,बिल्डर हो, सब के सब हर बात की नीव जूठ पर ही होती हैं। घरकाम में मदद करने वाले को फालतू में छुट्टी चाहिए इसलिए,सब्जी वाले को अपनी सब्जी जो बासी हैं उसे ताजा साबित करना हैं इसलिए जूठ के पुलिंदे छोड़ता हैं।दुकानवाले और सेल्स आदि को भी अपना घटिया स्तर का माल ज्यादा मुनाफे से बेचना हैं इसलिए ये अनाचार करते हैं।और बिल्डर की तो बात ही न पूछो,हरेक क्षेत्र में सिर्फ ग्राहकों को शीशे में उतरने के लिए बड़े बड़े  जूठे  प्रलोभन देते हैं।बहन शादी केलिए ,अपनी खूबसूरत बीवी को दिखाकर बदसूरत बहन को ब्याह देने वाली नीति होती हैं उनकी।गांधीजी के एक भी असूल को हम कहां मानते हैं? बताएं क्या मानते हैं हम? बचपन से सुनते आएं हैं– सत्य,अहिंसा,चोरी,संग्रह,ब्रह्मचर्य, श्रम, छूआआछुत,निडर( अभय),स्वदेशी, अस्वाद,सर्वधर्म समभाव ये उनके  द्वारा दिए गए ११महाव्रत थे ,कहां होता हैं इनका पालन? 

वैसे ही शास्त्रीजी के बारे में कह सकते हैं।प्रामाणिकता उनके जैसी कहा देखी जायेगी,प्रधानमंत्री बनने के बाद भी बैंक से कर्ज ले गाड़ी खरीदने वाले देखे हैं कभी? सादगी भी बेनमुन थी उनकी,कपड़े तक गिने चुने होते थे उनके पास,एक जोड़ा धोते थे तो दूसरा पहनते थे।अन्न का व्यय न हो इसलिए पूरे देश में सोमवार को एक ही बार खाना खाने का आह्वाहन देने वाले ने जय जवान जय किसान का सूत्र दिया था देश को जब युद्ध और अन्न की कमी से देश मुश्किल में था।

  न ही हम गांधीजी के ११ में कोई भी महाव्रत का पालन कर सकतें हैं और नहीं शास्त्रीजी के अहवाहनो का सम्मान करते हैं तो कैसे सम्मान दें उन्हे?

 जब भी उनकी जन्म जयंती पर उन्हें याद करें तब उनके असूलों में से कुछ का ही सही, पालन करेंगे तब हमारी श्राद्ध सुमन अपने आप ही उन तक पहुंच जायेंगे।

जय जवान जय किसान


जयश्री बिरमी

अहमदाबाद