आजीवन प्रतिबंध पर संसद को गौर करना चाहिए, अदालत को नहीं

नई दिल्ली। सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों को तेजी से निपटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई. चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने लंबित मामलों को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने अधिकतर मामलों में रोक लगा रखी है. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी क्यों नहीं हाई कोर्ट से रोक हटाने की मांग करती है या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही हैं.

चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने नाराजगी जताते हुए आगे कहा कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में 10 से 15 साल के लिए आरोपपत्र दाखिल ना करने का कोई कारण नहीं है. उन्होंने कहा कि सिर्फ प्रॉपर्टी अटैच करने से कुछ नहीं होगा, जांच लंबित रखने का कोई कारण नहीं है.

केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की जांच पूरी करने के लिए जांच एजेंसियों पर समय सीमा तय करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, कोर्ट के दखल से चीजें सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रही हैं. आप हाई कोर्ट को इसमें तेजी लाने का निर्देश दे सकते हैं

इस पर सीजेआई ने कहा, हमने पहले ही उच्च न्यायालयों को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बनाने का निर्देश दिया है. जांच एजेंसियां आगे बढ़ सकती हैं और जांच पूरी कर सकती हैं. सीजेआई ने कहा कि ढांचागत सुविधाओं के आभाव है, इस पर एसजी जवाब स्पष्ट करें.

सीजेआई एनवी रमणा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने वकील विकास सिंह ने कहा कि यदि कोई नेता गंभीर अपराध में दोषी पाया जाता हैं तो उसे सजा के बाद 6 साल तक चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए. इस मुद्दे पर आपको विचार करने की जरूरत है. इस पर सीजेआई ने कहा, आजीवन प्रतिबंध एक ऐसी चीज है जिस पर संसद को गौर करना चाहिए, अदालत को नहीं.

वहीं सीनियर वकील और अदालत मित्र (एमिकस क्यूरी) विजय हंसारिया ने कहा कि हाई कोर्ट को आईपीसी की धारा-309 के तहत लंबित मामलों की सुनवाई में दिन-प्रतिदिन तेजी लाने के लिए निर्देश जारी करने को कहा जाए. न्यायिक अधिकारियों के समक्ष लंबित अन्य मामले किसी अन्य अधिकारी को आवंटित किए जा सकते हैं.

हंसारिया ने कहा ईडी, सीबीआई, और एनआईए की रिपोर्ट के तथ्य और आंकड़े चौकाने वाले हैं. उन्होंने कहा कि 51 सांसदों और पूर्व सांसदों के खिलाफ मनीलॉन्ड्रिंग के तहत मामले दर्ज है. उन्होंने कहा, सभी हाई कोर्ट को इस आशय का प्रशासनिक निर्देश जारी करने का निर्देश दिया जाए कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांचे गए मामलों से संबंधित अदालतें सांसदों/विधायकों के समक्ष लंबित मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाएं.

उन्होंने कहा कि अधिकतर राज्यों की ओर से हलफनामे दाखिल किए गए हैं. लेकिन एनआईए जिन मामलों में जांच कर कहा है, उसके बारे में अभी कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है.

सीजेआई ने सरकार से कहा कि कृपया निगरानी समिति के सुझावों पर गौर करें, हम कुछ नहीं कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि कुछ मामले में तो ऐसे हैं जिसमें अभी तक चार्जशीट भी दाखिल नहीं किया गया है. वहीं जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि सीबीआई-ईडी के निदेशक बता सकते हैं कि कितनी अतिरिक्त मैनपावर की आवश्यकता है.

इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि सिर्फ 5 केस ऐसे हैं, जिनमें एनआईए जांच कर रही है. उन्होंने कहा कि सीबीआई और ईडी की देखरेख में चल रही जांच से संबंधित मामलों का ब्यौरा एमिकस क्यूरी को सौंपा गया है. उन्होंने कहा, मैं एमिकस की इस दलील का समर्थन करता हूं कि एमपी/एमएलए के खिलाफ लंबित मामलों का निपटारा तेजी से होना चाहिए. मैं उनके साथ (सीबीआई-ईडी) एक संयुक्त बैठक करूंगा, जो भी कमी है उसे दूर किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट से विशेष अदालतों की स्थापना और प्रक्रिया को तेज करने के लिए कहेंगे, यह उम्मीद नहीं कि जा सकती कि सब कुछ एक दिन में हो जाएगा, ओडिशा में 322 मामले लंबित हैं.