पिता की यादे

मन का दर्द छलक आताहै,

आज तुम्हारी यादों में।

शब्दहीन हो जाता मानस,

पिता तुम्हारी बातों में।

क्या लिखूं और क्या छोडूं,

ये जीवन तेरी थाती है।

आप नहीं जब इस जीवन में,

सोना भी अब माटी है।

खोजू कहा की मिल जाओ,

कोई न बिटिया कहता है।

कार्य करो कितने अच्छे,

कोई न तनिक निरखता है।

सर पर हाथ न रखता कोई,

साहस न अब भरता है।

मेरी इच्छाओं को अपनी,

पूंजी कोई न कहता है।

कोई न परिचय करवाता,

ये बिटिया मेरी सयानी  है।

पापा मैं दर्पण हूं तुम्हारा,

ये जीवन एक कहानी है।।


सीमा मिश्रा,बिन्दकी-फतेहपुर,

उत्तर प्रदेश