मेरे पापा

जो सवेरा होने से पहले जग जाते हैं

चाँद निकलने के बाद घर आते हैं


हम तो कह देते हैं...

जो हम चाहे

पर पापा से पूछो...

कहाँ से लाए


न जाने उनके शरीर में

कितनी थकान है

फिर भी बच्चों के सपनों का

एक नया मकान है


हम तो सो जाते हैं पता नहीं

वो घर कब आते हैं

हम उठते भी नहीं हैं 

और वो फिर से चले जाते हैं


तरस जाती हैं आँखें

पापा को देखने के लिए

पर वो हमसे दूर रहते हैं

हमारे सपनों के लिए


खुद की चप्पल घीस जाती है

हमें नई पहनाते हैं

खुद के कपडे.फट जाते हैं

पर हमें नए दिलवाते हैं


पिता ही बस एक वो शख्स है

जो खुद भूखा रहता है

पर हमें अच्छे से अच्छा

खिलाता है


खुशनसीब हैं हम

जो हमें ऐसे पापा मिले

जो हमारे लिए 

धूप में भी जले

देख जिन्हें हमारा घर 

अपने आप खिले।


परिचय - नीतू कुमारी

छात्रा व लेखिका

मु.पो. कसेरू,मुकुन्दगढ़ झुंझुनूं राजस्थान।