दांतो मे लेकर उंगलिया न मुस्कुराया कर

तेरे मेरे बीच की सभी बातें , 

सखियो को मत बताया कर ,
जुल्कों को हटा ले चहरे से ,
चांदनी को भी शरमाया कर , 
वादा करना कोई बात नही है , 
वादों को शिद्दत से निभाया कर ,
नजरो में जमाने की नही रहना .
इन पलको में छुप के बैठ जाया कर 
जब भी कभी साथ चलना हो ,
सारी दुनिया को भूल जाया कर,
ना उम्मीदी कुफ़ है क्या नहीं मालूम ,
हाथ भी दुआ के लिए उठाया कर,
चाहने वाला है ये पागल मुश्ताक , 
दीवाने को इस तरह मत सताया कर , 
कभी दिन को भी रात तु कर दे ,
काजल आंखो मे तु लगायाकर,
बहुत प्यास है ला पिला दे आंखो से,
कभी होठों से होंठ भी लगाया कर ,
छत पे आजाऊ तेरी डर लगता है ,
दुपट्टा हवाओं में तु उडाया कर,
एक मुद्दत हुई कोई अता पता नही ,
फेसबुक पर भीउंगलियां घुमाया कर , 
मां बाप की दुआएं यूं ही नही मिलती,
पास बैठ उनके हाथ पांव भी दबाया कर ,
आएगा तुझे फिर वो बचपन का मज़ा ,
गलियों में बच्चो के साथ पल बिताया कर,
दौर पनघट का नही मुझको पता है,
छाओं में पीपल की तो आ जाया कर,
बल खा जाएगी और कमरिया तेरी ,
इस तरह गगरिया मत उठाया कर ,
हजारो दिल धड़क जाते है अन्दाज़ से तेरे,
दांतो मे लेकर उंगलिया न मुस्कुराया कर ,
बैताब है शमा लौ मे जलने के लिए" मुश्ताक" 
हम पे भी तो कभी बिजलिया गिराया कर,

डॉ . मुश्ताक़ अहमद  शाह "सहज़"
हरदा 
मध्यप्रदेश,,,