स्वतंत्रता दिवस एवं भारत के समक्ष चुनौतियां






"जिसका ताज हिमालय है, जहाँ बहती गंगा है, जहाँ अनेकता में एकता है, सत्यमेव जयते जहाँ का नारा है, जहां का मजहब भाईचारा है,और कोई नहीं दोस्तों वो भारत देश हमारा है।" आजादी यह एक ऐसा शब्द है जो प्रत्येक भारतवासी की रगों में खून बनकर दौड़ता है। स्वतंत्रता हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। तुलसीदास जी ने कहा है 'पराधीन सपनेहुं सुखनाहीं' अर्थात्‌ पराधीनता में तो स्वप्न में भी सुख नहीं है। पराधीनता तो किसी के लिए भी अभिशाप है। आज पूरे विश्व में भारत आशा की किरण बनकर सूर्य की भांति आकाश में चमक रहा है, यह सब आजाद भारत में ही संभव हुआ है।

जिस समय तमाम पूंजीवादी देश कमजोड़ राष्ट्रों का गला घोंट कर अपनी खुशियों की इमारत का निर्माण कर रहे थे। तमाम अंग्रेज लोग मखमली सेज पर अमन और चमन की नींद सो रहे थे और भारत की पीड़ित प्रताड़ित रुग्ण शोषित जनता दर दर की ठोकरें खा रही थी। एक ओर स्वर्णमयी परिधान में पूंजीपतियों के राजकुमार राजपथ पर टहलते नजर आ रहे थे, दूसरी ओर भारत की आम जनता किसी चौराहें पर अपने बेटे के कफ़न के लिए भीख मांग रही है। अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों और अमानवीय व्यवहारों से परेशान होकर जब भारत की जनता ने एकसाथ होकर आजादी का संकल्प लिया और भारतवर्ष में आजादी का संघर्ष 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ हो कर 1947 तक चला तब अंग्रेजों को यह विश्वास हो गया कि अब भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के आत्मबल व दृढ़ निश्चय के आगे उनकी हुकूमत ज्यादा दिनों तक और नहीं चल पाएगी तब उन्होंने भारत वर्ष को छोड़कर जाने व यहां से अपनी हुकूमत हटाने का फैसला लिया और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को अंग्रेजों की हुकूमत से आजादी मिली।

भारत का असली व पूरा गौरव, इसकी सीमाओं में नहीं, बल्कि इसकी संस्कृति, आध्यात्मिक मूल्यों तथा सार्वभौमिकता में है। तीन ओर से सागर तथा एक ओर से हिमालय पर्वत शृंखला से घिरा भारत, स्थिर जीवन का केंद्र बन कर सामने आया है। यहां के निवासी हजारों सालों से बिना किसी बड़े संघर्ष के रहते आ रहे हैं, जबकि बाकी संसार में ऐसा नहीं रहा। जब आप संघर्ष की सी स्थिति में जीते हैं, तो आपके लिए प्राणों की रक्षा ही जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य बना रहता है। जब लोग स्थिर समाज में जीते हैं, तो जीवन-रक्षा से परे जाने की इच्छा पैदा होती है। लेकिन आज प्रश्न उठा जाता है कि क्यूँ देश भक्ति राष्ट्र के दो पर्वो में सिमट कर रही गयी हैं ? ऐसे तो कोई देश के लिए नही सोचता बस अगस्त और जनवरी में ही क्यूँ खून उबलता हैं। आज स्वतंत्रता के लिए नहीं अपितु देश के भीतर आतंकवाद एवम भ्रष्ट्राचार के लिए लड़ना हैं और मुखोटा पहने अपनों के खिलाफ लड़ना हैं। यह लड़ाई और भी ज्यादा गंभीर हैं क्यूंकि इसमें कौन अपना हैं कौन पराया यह समझना मुश्किल हैं। भारत की गौरवशाली इतिहास रहा है- "जहाँ प्रेम की भाषा हैं सर्वोपरि, जहाँ धर्म की आशा हैं सर्वोपरि,
ऐसा हैं मेरा देश हिन्दुस्तान, जहाँ देश भक्ति की भावना हैं सर्वोपरि।"

एक तरफ भारत विकसित राष्ट्र की ओर बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ आतंकवाद , नक्सलवाद अपनी जड़ें जमा रहा है। आज हालत ये है कि तमाम आर्थिक गतिशीलता के बावजूद गरीबी और अमीरी के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है और जनसंख्या नियंत्रित होने के बजाय प्रति वर्ष 2 करोड़ की गति से बढ़ रही है। ।सत्ता के डंडे से लोक को हांकना लोकतंत्र नही है रामराज्य सच्चे अर्थों में लोकतंत्र होगा। इस लोकतंत्र से गायब है , तंत्र रह गया है , भ्रस्ट का तंत्र , भ्रस्टाचार का शासन। भ्रस्ट पहले शर्माते थे पर अब भ्रष्ट और भ्रष्टाचार खुलेआम सांड की तरह ठुस्सा मरते फिर रहे है।इन समस्याओं के ढ़ेर पर बैठे भारत को अब जरूरत है संवृद्धि की परिकल्पना को ज़मीनी हकीकत में बेल देने की है। तभी हम वास्तविक गर्व की अनुभूति होगी और तभी हम कह सकते है कि हाँ , हम आजाद भारत के समर्थ नागरिक है

आजादी के 69 सालों बाद भी देश गरीब हैं इसका कारण हैं आपसी फुट। जिसका फायदा उस वक्त भी तीसरे लोगो ने उठाया और आज भी उठा रहे हैं। 1947 के पहले 1857 में भी इसी तरह से क्रांति छिड़ी थी। देश में चारो तरह आजादी के लिए युद्ध चल रहे थे। उस वक्त राजा महाराजों का शासन था लेकिन वे सभी राजा अंग्रेजों के आधीन थे। 1857 का वक्त रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाना जाता हैं। उस वक्त भी अंग्रेजो की फुट एवम राजाओं के बीच सत्ता की लालसा के कारण देश आजाद नहीं हो पाया। उसके बाद जब हम मुगुलो और राजपूतों का वक्त देखे तब भी फुट ने ही देश को कमजोर बनाया। उस वक्त भी महाराणा प्रताप की हार का कारण फुट एवम राजाओं की सत्ता की भूख थी और आज हम जब निगाहे उठाकर देखते हैं, तब भी हमें यही दीखता हैं कि देश के नेताओं को बस सत्ता की भूख हैं , वो देश की जानता को साम्प्रदायिकता के जरिये तोड़ रहे हैं और इसमें उन्हें बस सत्ता की भूख हैं।कहा जा सकता है -"धर्म ना हिन्दू का हैं ना ही मुस्लिम का, धर्म तो बस इंसानियत का हैं, भूख से बिलकते बच्चो से पूछों,सच क्या हैं झूठ क्या हैं।"

देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले शहीद के लिए जितना कहा जाए कम ही हैं। एक ऐसा महान व्यक्ति जो अपने कर्तव्य के आगे अपनी जान तक को तुच्छ मानता हैं। उसके लिए शब्दों में कुछ कह पाना आसान नहीं, पर हम सभी लोग जिन्हें जान देने का मौका नहीं मिलता या कहे हममे उतनी हिम्मत, ताकत नहीं हैं। हम भी देश के लिए कार्य कर सकते हैं। जरुरी नहीं जान देकर ही देशभक्ति का जस्बा दिखाया जाये। हमें अपने कर्तव्यों अधिकारों के प्रति सजक होना होगा उनका निर्वाह करना होगा। यह उन शहीदों, देश भक्तो एवम मातृभूमि के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। देश भक्ति प्राण न्यौछावर करके ही निभाई नहीं जाती बल्कि देश के लिए हर मायने में वफादार होना भी देश भक्ति हैं। देश की धरोहर की रक्षा करना, देश को स्वच्छ बनना, कानून का पालन करना, भ्रष्ट्राचार का विरोध करना, आपसी प्रेम से रहना आदि  यह सभी कार्य देशभक्ति के अंतर्गत ही आते हैं।
इस देश का मुख्य आकर्षण है कि हमें पता है कि मानव-तंत्र कैसे काम करता है, हम जानते हैं कि इसके साथ हम क्या कर सकते हैं या इसे इसकी चरम संभावना तक कैसे ले जा सकते हैं। हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि महान मनुष्यों के निर्माण से ही तो महान देश की रचना हो सकती है। परंतु अब, लोगों को भौगोलिक सीमाओं में ही गौरव का अनुभव होने लगा है।

स्वाधीनता आंदोलन का संघर्ष कुछ स्वप्नों को यथार्थ में बदलने का संघर्ष था-और यथार्थ को बदलने का। उनमें प्रमुख थी राजनैतिक पराधीनता। स्वाधीनता आंदोलन केवल राजनैतिक आंदोलन नहीं था। इस आंदोलन का हर छोटा-बड़ा नेता और कार्यकर्ता सुधारवादी या क्रांतिकारी भी था। क्योंकि जैसे-जैसे आंदोलन बढ़ता गया यह स्पष्‍ट होता गया कि सांस्कृतिक आंदोलन के बगैर राजनीतिक लक्ष्य को नहीं प्राप्‍त किया जा सकता। इस बात को सबसे ज्यादा गांधी जी महसूस करते थे कि जीवन-आचार और सोच को बदले वगैर स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। अहिंसा सांस्कृतिक आचार है। वह जीवन-भर में व्याप्‍त है। अहिंसा शब्द मात्र नहीं, वह दर्शन और कर्म दोनों है। गांधी जी की अगुआई में हमने स्वतंत्रता प्राप्‍त की। लेकिन स्वतंत्रता प्रा‌प्ति की प्रक्रिया में ही राजनैतिक दलों के लोगों ने गांधी जी के विचार को त्याग दिया। उसे आदर्शवादी या अव्यावहारिक समझ लिया, यद्यपि ऐसा घोषित नहीं किया। इसके बाद गांधी-साहित्य, गीता-भागवत हो गया और गांधी जी प्रेरणा-पुरुष अवतार या हमारे वैचारिक-सांस्कृतिक पताका-उत्सव-पुरुष हो गए। हमने संविधान बनाया। संविधान में गांधी जी भुला तो नहीं दिए गए। उनका असर थोड़ा-बहुत संविधान पर जरूर है-विशेषतः निर्देशक सिद्धातों पर। हमारे संविधान की रचना अपने आप में महान ऐतिहासिक आश्चर्य है। यह आश्चर्य स्वाधीनता आंदोलन और गांधी के बगैर नहीं घटित हो सकता था। मनुस्मृति को मानने वाले देश की रचना आंबेडकर-दलित चिंतक और आंदोलनकारी के नेतृत्व में हुई। इतनी लंबी यात्रा में सिर्फ आधुनिक विचारों का ही योगदान नहीं-वास्तविक योगदान महान भक्ति आंदोलन का है जो मूलतः वर्ण व्यवस्‍था और सामंतवादी व्यवस्‍था के विरुद्ध ऐसा आंदोलन था जो धार्मिक रूप से ही सक्रिय हो सकता था।

भारत ने स्वतंत्रता संग्राम  के दौरान जिन सपनों और मूल्यों से दुनिया में परतंत्र देशों में हलचल पैदा किया था, उसे संविधान की प्रतिबद्धता ने व्यापक स्वर दिया। भारत दुनिया के चंद देशों में एक है जिसने आजादी के बाद ही लोकतंत्र को व्यापक और मजबूत बनाने में कामयाबी हासिल किया है। भारत का संविधान वह जीवंत दस्तावेज है, जो भारत की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है और एक वैज्ञानिक चेतना के साथ समाज में गैरबराबरी समाप्त करने की प्रतिबद्धता जाहिर करता है। भारत की आजादी के आगे-पीछे स्वतंत्र हुए ज्यादातर देश जब सैन्य और नागरिक तानाशाहियों के शिकार हुए भारत के नेतृत्व ने लोकतंत्र को कमजोर नहीं होने दिया। आजादी के बाद से ही भारत के जनगण ने लोकतंत्र को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाते हुए उन तमाम प्रयासों को नकार दिया जो स्वतंत्रता को सीमित करने के मकसद से अमल में लाने की पहल की गयी। भारत का संविधान ही शक्ति का वह स्रोत है, जो लोकतंत्र की चेतना को व्यापक बनाने का आधारतत्व प्रदान करता है। जीवंत संविधान जहां लोकतंत्र की गारंटी देता है, वहीं समाज के सभी तबकरों को अपनी आकांक्षाओं के अनुकूल जीवन हासिल करने की ताकत भी प्रदान करता है।भारत के आजाद हुए सात दशक हो चुके हैं और भारत विकास के कई पड़ाव पार कर चुका है। इसमें भारत ने बैलगाड़ी से लेकर एयर इंडिया तक का सफर तय किया है। नए नए आविष्‍कारों और तकनीकी विकास से भारत विश्‍व में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रहा है. भारत ने अपनी आजादी के उन मूल्‍यों को संजोये रखा है जिन मूल्‍यों से इसे स्‍वतंत्रता प्राप्‍त हुई है। इसीलिए आजादी का यह पावन दिन हर भारतीय के ह्रदय को राष्‍ट्र के प्रति अपार प्रेम बलिदान और शौर्यपूर्ण भावनाओं से भर देता है। हमारे स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जिस भारत का सपना देखा था उसे साकार हम भारतीयों को करना है। यही इन भारतीय सपूतों के बलिदानों को सच्‍ची श्रद्धांजलि होगी।

भारत की मुख्य चुनौती अब भी आर्थिक और समाजिक क्षेत्र की गैरबराबरी है। इसके कारण समाज के विभिन्न तबकों में आक्रोश है. भारत ने 1991 के बाद जिन आर्थिक नीतियों को अपनाया है, उससे गंभीर हालात पैदा हो गए हैं। इस कारण सामाजिक गैरबराबरी भी गंभीर होती गयी है। इसका असर समाज और देश के विभिन्न क्षेत्रों में दिख रहा है।पिछले दशकभर से भारत के वंचित जनसमुदायों का असंतोष बहुत गहरा गया है। भारत की राजनीति जिस तरह कॉरपोरेट घरानों के आगे नतमस्तक है, उसका असर आमजन के सशक्तिकरण पर भी पड़ रहा है।

वर्तमान भारत के समक्ष खड़ी चुनातियो से निपटने पर ज्यादा ध्यान देना होगा। जो चुनौतियां है उनमें पहला , जनसंख्या को देख सकते है। एक हालिया आकलन के मुताबिक, 2020 तक देश में कामकाजी उम्र के लोगों की आबादी 90 करोड़ तथा नागरिकों की औसत आयु 29 वर्ष हो जायेगी जो चिंता का विषय है। दूसरे बेरोजगारी, भारत में रोजगार जरूरतों के कारण आर्थिक विकास पिछड़ता प्रतीत हो रहा है, भारत में रोजगार के अवसर लगातार कम हो रहे हैं। यहां युवाओं को नौकरी न मिलने की सबसे बड़ी चुनौती है। तीसरे भ्रष्टाचार ,भारत में अपना कोई न कोई जरुरी काम करवाने के लिए 54 फीसदी लोगों ने रिश्वत दी, यानि देश का हर दूसरा शख्स रिश्वत देने में यकीन रखता है। चौथे आतंकवाद, बेरोजगारी की चुनौती देश के अंदर की बात है लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती है आतंकवाद, जो देश के लिए एक बड़ी परेशानी का सवाल है, आतंकवाद से प्रभावित देशों में भारत का चौथा नंबर है। पाँचवे चुनौतियों में लचर शिक्षा व्यवस्था है। बदलते भारत में खराब शिक्षा व्यवस्था एक चिंता का कारण है स्कूलों में कक्षा पांच में पहुंचने वाले बच्चों में 50 प्रतिशत कक्षा दो की पुस्तकें भी नहीं पढ़ पाते। हालांकि नई शिक्षा नीति से कुछ ठोस बदलाव की अपेक्षा की जा सकती है। छठी चुनौती ड्रग्स तस्करी, पूरे भारत की बात करें तो दक्षिण एशिया में भारत हेरोइन का सबसे बड़ा अड्डा है इसमें युवा वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित है। सातवी ध्वस्त पड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था जो कि कोरोना काल मे दम तोड़ती और जूझती नजर आ रहा है। भारत में बिगड़ी हुई स्वास्थ्य व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौती है, यहां 1,050 मरीजों के लिए सिर्फ एक ही बेड उपलब्ध है। जो स्वास्थ्य व्यवस्था को खुद में ही बीमारी को दिखा रहा है।

कुछ लोग अपने स्वार्थपूर्ति के लिए हमारे पवित्र देश को भ्रष्टाचार की चादर में समेट रहे हैं और देश की भोलीभाली जनता को गुमराह कर रहे हैं। हमें एक होकर ऐसे भ्रष्ट लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है तथा भ्रष्टाचार रूपी रावण का अतिशीघ्र दहन करना चाहिए।
भारत वर्ष को पहले की भांति सोने की चिड़िया बनाना है तथा आजादी का सही अर्थ समझना है, प्रत्येक भारतीय को अपने अधिकारों से ज्यादा अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा, तभी हमारा देश पूरे विश्व में एक महाशक्ति बनकर सामने आएगा।  घूस, जमाखोरी, कालाबाजारी को देश से समाप्त करने पर कार्य करना होगा। भारत के नागरिक होने के नाते स्वतंत्रता का न तो स्वयं दुरुपयोग करें और न दूसरों को करने दें। एकता की भावना से रहें और अलगाव, आंतरिक कलह से बचें। भारत की विशेषता है-  "मोहब्बत का दूसरा नाम हैं मेरा देश, अनेको में एकता का प्रतिक हैं मेरा देश, चंद गैरों की सुनना मुझे गँवारा नहीं, हिन्दू हो या मुस्लिम सभी का प्यारा है मेरा देश।"

-- नृपेन्द्र अभिषेक नृप
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