(सर्वहारा क्रांति के अग्रदूत- पंडित मुनीश्वर दत्त उपाध्याय)


प्रतापगढ़। अवध के कौटिल्य,  प्रखर अर्थशास्त्री, सर्वहारा क्रांति के अग्रदूत, किसान आंदोलन के प्रमुख नायक, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, प्रतापगढ़ जनपद में शिक्षा की बेमिसाल अलग जगाने वाले एवं भगवान 'आशुतोष' के सच्चे पुजारी को लक्ष्मणपुर गांव '03 अगस्त 1898' को पाकर न केवल सुकून की अनुभूति किया होगा बल्कि विश्व मंच पर प्रतापगढ़ जनपद की धुंधली तस्वीर में नई चमक तराशने वाले के अभ्युदय से गौरवान्वित एवं सम्मानित होने की 'आस' भी पूर्ण हुई होगी। पंडित जी 1927 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयाग से एम.ए. (अर्थशास्त्र) विषय में 1929 में एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कर जब प्रतापगढ़ की धरती पर पांव रखकर यहां की कचहरी में प्रैक्टिस करने लगे तब यही सपना देखे थे कि 2 वर्ष यहां प्रैक्टिस करने के उपरांत 'चीफ कोर्ट' लखनऊ में जाकर प्रैक्टिस करूंगा। परंतु 'होइहैं सोई जो राम रचि राखा'। विधाता को इनको कुछ और बनाना था और उद्धार करना था- ' यहां के गरीब किसानों, असहाय मजदूरों और पिछड़े तबके के लोगों का'। सामंतवादी व्यवस्था को निर्मूल करके अधिकार वंचितों के अधिकार को दिलाना इनका मुख्य ध्येय बन गया। 1931 में 'किसान आंदोलन' की मुख्यधारा से जुड़कर किसानों की दुर्दशा का आवाज उठाने के कारण ये इनके प्रणेता बनकर 'बड़े पंडित जी' के नाम से जाने पहचाने लगे। 9 अगस्त 1942 को 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन के समर्थन में नैनी जेल में ' बी क्लास' की सुविधा दिलाकर श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के प्रिय बन गए। 1948 को पंडित जी निर्विरोध रूप से 'डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चेयरमैन' बन गए। 26 जनवरी 1950 को लागू होने वाले संविधान पर पंडित मुनीश्वरदत्त उपाध्याय जी का हस्ताक्षर इनकी गौरवगाथा की प्रामाणिकता सिद्ध करती है। नवीन संविधान के अनुसार यह 1952 एवं 1957 को लोकसभा चुनाव मैं विजयी होकर संसद में न केवल प्रतापगढ़ की समस्याओं पर आवाज उठाई अपितु समय-समय पर उत्तर प्रदेश की समस्याओं से सरकार को आगाह करते रहे। 23 दिसंबर 1954 से 1956 तक यह उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर रहकर 'सीतापुर की दावत' मैं पंडित जवाहरलाल नेहरु की उपस्थिति में भी ना जाकर इस पद की गरिमा अपने उत्कृष्ट आचरण से बढ़ाई। विधान परिषद के सदस्य के रूप में 1966 से 1972 तक आपने उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वपूर्ण सेवाएं की।  पंडित जी का राजनीतिक जीवन दर्शन जितना व्यापक था उतना ही अलौकिक व्यापकता लिए हुए या इनका अर्थ शास्त्रीय चिंतन। इन्होंने व्यावहारिक रूप में 'अनगिनत शिक्षण संस्थानों' की एक बारगी में स्थापना कर 'विकास मॉडल' का जो  स्वरूप विश्व पटल पर रखा उसकी 'अमर्त्य-गाथा' सदियां सदैव गाती रहेंगी। अर्थशास्त्र के सिद्धांत में उत्पत्ति के पांच साधनों में से एक महत्वपूर्ण साधन 'साहस' है। नवप्रवर्तन का कार्य यही 'साहसी' करता है। यही सरोकार था कि पंडित जी किसी का ' पिछलग्गू' ना बनकर अर्थ शास्त्रीय सिद्धांतों को व्यावहारिकता देते हुए 'अवध के कौटिल्य' बन गए। पंडित जी पौराणिक परंपरा एवं शास्त्र सम्मत 'विद्याधनम सर्वधनम प्रधानम' पर कल्याणार्थ ' विद्याधन' के माध्यम से 'अर्थशास्त्र के पिता' कहलाने वाले 'एडम स्मिथ' के धन संबंधी परिभाषा को मात दे दिया। कार्ल मार्क्स के 'दास कैपिटल' और 'जॉन स्टुअर्ट मिल' के 'ऑन लिबर्टी' का अध्ययन करने से पंडित जी की विचारधारा समाजवाद की ओर मुड़ी। आचार्य नरेंद्र देव की समाजवादी विचारधारा ने इन्हें समाजवादी बना दिया। जिसके फलस्वरूप कांग्रेस में रहकर भी ये 'सोशलिस्ट कांग्रेस' के पक्षधर थे। अवध प्रांत में समाजवाद का शंखनाद करने के कारण ही इन्हें 'सर्वहारा क्रांति का अग्रदूत' माना जाता है। 'प्रजातंत्र में उत्तराधिकारवाद के वे सदा विरोधी रहे हैं'। 'रोडान मॉडल' जहां 1943 में सिद्धांत एक पहलू पर विचार कर रहा था वही पंडित जी ने 1948 में इस मॉडल का क्रियान्वित रूप देते हुए 'प्रबल धक्के' के रुप में जनपद प्रतापगढ़ में एकबारगी में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कर सामाजिक उपरिव्यय पूंजी (SOC) के अंतर्गत 'पूंजी की अविभाज्यता' को तोड़ने का प्रबल प्रयास किया। परिणाम यह हुआ कि इतनी बड़ी शिक्षण संस्थाओं स्थापना न केवल हजारों की संख्या में पढ़े-लिखे बेरोजगारों को रोजगार मिल गया अपितु दूसरी तरफ इन लोगों के आय स्रोत बढ़ने से मांग मात्रा बढ़ गई। धीरे-धीरे बाजार का आकार बढ़ने लगा। पूरक उद्योगों की स्थापना को बल मिला। रोजगार के और नए अवसरों का सृजन हुआ। परिणाम स्वरूप पिछड़ा जनपद प्रतापगढ़ क्रमिक रूप से विकास के पथ पर अग्रसर होता चला गया। इसके साथ ही साथ सड़क,  परिवहन,  संचार,  बैंकिंग, स्वास्थ्य और संवहन का विकास इस जनपद में उत्तरोत्तर हुआ। पंडित जी 'लर्न एंड अर्न' अर्थात 'पढ़ो और कमाओ' का नारा दिया। यह 'स्वहित' की भावना से ऊपर उठकर 'परहित' की भावना पर ज्यादा विश्वास रखते थे। स्वनाम धन्य पंडित मुनीश्वर दत्त उपाध्याय 'सुख दुखे समे कृत्वा लाभा लाभा जया जयौ' पर समान दृष्टिकोण जीवन पर्यंत बनाए रखें। स्वयं सिद्ध है कि पंडित जी अवध के कौटिल्य हैं। हम ऐसे 'एक व्यक्ति-एक युग' को शत शत नमन करते हैं।