पछता रहा हूं मैं

तन्हाईयों में जिंदगी बिता रहा हूं मैं


दर्द से, गमों से टूटा जा रहा हूं मैं

चल के बहुत दूर जो मंजिल नहीं मिली

बनके राही प्यार का पछता रहा हूं मैं 

 

अरमान जितने थे , दम सभी के घुट गए 

नींद, चैन जिंदगी के सारे लुट गए

बिना करार के ही जिए जा रहा हूं मैं

बनके राही प्यार का पछता रहा हूं मैं  

 

अपने दिल को मैं कभी भी टोक न पाया

चाहकर के भी इसको रोक न पाया 

दिल के गलतियों की सजा पा रहा हूं मैं

बनके राही प्यार का पछता रहा हूं मैं 

 

दर्द का तूफान दिल से जा नहीं रहा

क्या करूं समझ में कुछ आ नहीं रहा

कठिन ये अपनी जिंदगी बना रहा हूं मैं

बनके राही प्यार का पछता रहा हूं मैं 

 

विक्रम कुमार

मनोरा, वैशाली